ज़िलें में आधे से ज्यादा क्लिनिक चल रहे भाड़े पर
डिग्रीधारी एक लायसेंस पर चला रहे एक से ज्यादा क्लिनिक
पवन नाहर (9424567444)
मेडिकल वालों की लापरवाही से किसी की जान जाने का यह पहला मामला नही है इससे जुड़े अनेक मामले है जिसमें नोसिखिये मेडिकल ऑपरेटर ने गलत दवाई देकर मरीजों की जान हलक में डाल दी है। सूत्रों की माने तो झाबुआ जिला मुख्यालय सहित आदिवासी अंचल की हर विधानसभा में व गाँव फलियों में इस तरह के मेडिकल संचालित होने लगे है जिसमें मेडिकल खोलने की परमिशन तक नही ली गई है वही अनेक मेडिकल की जाँच की जाए तो बड़ा चौकाने वालें तथ्य सामने आने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार ज़िलें के साथ थांदला, मेघनगर, पेटलावद, राणापुर आदि बड़े स्थानों पर जो मेडिकल संचालित हो रहे है उन पर 10वीं 12वीं पास लड़के काम कर रहे है तो कुछ मेडिकल ऐसे भी है जिसमें मेडिकल लायसेंस भाड़े पर लेकर उसका संचालन किया जा रहा है। ऐसा नही है कि यह मामला जिला चिकित्सा अधिकारी व स्थानीय खण्ड चिकित्सा अधिकारी की संज्ञान में नही है लेकिन वे अपने कर्तव्य से विमुख होकर मोटी मलाई या रसूख दबाव के चलते कार्यवाही की झंझट से बचना सही समझते है। ग्रामीण अंचल में अधिकांश आबादी सीधे सादे भोलें लोग रहते है जिनमें भी अनपढ़ व कम पढ़ी लिखा होने से वे नही जानते कि कौन लायसेंसधारी है व कौन भाड़े का मेडिकल क्लिनिक चला रहे है, ऐसे में उन्हें आसानी से बकरा बनाया जा सकता है यही कारण है कि बीते दिनों स्वास्थ्य सम्बंधी अनेक मामले सामने आने के बावजूद जिला स्वास्थ्य प्रशासन ने चुप्पी साध रखी है।
यह है नियम लेकिन होता है इसका उल्टा
देखा जाए तो किसी भी मेडिकल को खोलने के लिए आपको पहले बी/डी फार्मेसी डिप्लोमा लेकर स्टेट फार्मेसी काउंसिल में रजिस्टर करवाकर ड्रग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए राज्य औषधि नियंत्रण संगठन या केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के माध्यम से आवेदन कर लायसेंस लेना होता है। इसके अलावा आपको मेडिकल स्टोर के लिए उपयुक्त जगह, फर्नीचर, और दवाओं का स्टॉक भी सुनिश्चित करना होता है तब जाकर नियत स्थान पर आपका मेडिकल स्टोर खुलता है जहाँ आप मरीज ग्राहकों को अधिकृत डॉक्टरों की पर्ची के आधार पर ही मेडिसिन दे सकते है। नए नियम के अनुसार कुछ ड्रग्स (दवाइयों) की मर्यादित छूट के साथ के अलावा आप किसी भी प्रकार से ग्राहकों को अन्य मेडिसिन नही दे सकते है वही प्रतिबंधित व जो ड्रग्स लिस्ट में नही आती है वह मेडिसिन आप स्टोर में नही रख सकते हो। इसी के साथ आपके यहाँ नियुक्त कर्मचारियों को किसी भी प्रकार से ड्रग्स देने का अधिकार नही होता है। जब मेडिकल स्टोर के लिए इस प्रकार के नियम बने हुए है तो फिर कैसे नियमों को ताक पर रख कर मेडिकल स्टोर संचालक अपना लायसेंस भाड़े पर दे देता है या फिर कॉलेज स्टूडेंट्स या अन्य नो सिखियों को काम पर रखते हुए उन्हें मेडिकल स्टोर की आड़ में पूरा ईलाज करने की छूट देता है इसका कारण स्पष्ट प्रशासनिक लापरवाही या चूक ही हो सकती है अथवा ऐसे संचालकों को नियमों की अनदरखी पर सजा का भय ही नही रहा है।

प्रधान संपादक
पत्रकार – 30 वर्षों से निरंतर सक्रिय होकर – नेशनल न्यूज के मैनेजिंग डायरेक्टर, सोशल मीडिया फाउण्डेशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी है। आप वर्तमान समय में प्रदेश की सकारात्मक पत्रकारिता करते हुए शासन प्रशासन के तीखे आलोचक बनकर जनता की मूलभूत समस्याओं को प्राथमिकता से उठाते हुए उसका निराकारण करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। जीवदया अभियान के राष्ट्रीय संयोजक होकर समाजसेवा में रुचि रखते है।