थांदला विधानसभा सीट उलझी दावेदारों में – फैसला जन आशीर्वाद यात्रा के कारण लेट

थांदला विधानसभा सीट उलझी दावेदारों में – फैसला जन आशीर्वाद यात्रा के कारण लेट
थांदला। आरक्षित विधानसभा 194 थांदला के लिए कांग्रेस के लिए एक मात्र गाँधी कहे जाने वालें विरसिंह भूरिया को किसी ने भी चुनोती नही दी है वही भाजपा में टिकट के अनेक दावेदार सामने आ रहे है। इनमें से मुख्य रूप से दो बार के विधायक रहे कलसिंह भाबर, ग्रामीण नेता श्यामा ताहेड, रमसू पारगी व सुशीला भाबर प्रमुख है वही राजेश वसुनिया व बंटी डामोर की मांग भी बनी हुई है। एक तरफ तो पूर्व विधायक रहे वर्तमान अजजा प्रदेशाध्यक्ष कलसिंह भाबर स्वयं टिकट के लिए दावेदारी कर चुके है तो सोशल मीडिया पर उनका प्रचार भी शुरू हो गया है, जिसको लेकर उनकी ही पार्टी के स्थानीय नेता चुटकी लेने में लगे हुए है व भोपाल से लेकर दिल्ली तक इसकी बहस भी छिड़ी हुई है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की जन आशीर्वाद यात्रा के कारण पार्टी ने आरक्षित सीटों के लिए अभी तक कोई एलान नही किया है ऐसे में दावेदार भी जोड़ तोड़ की राजनीति करते हुए में नही तो यह भी नही का खेल खेलने में लगे हुए है वही भाजपा के दो बार के विधायक रहे कलसिंह भाबर का विरोध उनके लिए कठिनाई पैदा किये हुए है ऐसे में वह अपने बेटे संजय भाबर के लिए टिकट की मांग करने की बात भी सामने आ रही है जिससे भी स्थानीय अन्य नेताओं में भारी नाराजगी देखी जा रही है यही कारण है कि एक तरफ कलसिंह भाबर कोई बैठक करते है तो अन्य नेता लगभग नदारद मिलते है जिससे उनके खिलाफ नाराजगी के साफ संकेत दिखाई दे रहे है, तो दूसरी तरफ अन्य नेता मिलकर अंचल में बैठक करते देखे जा सकते है जो उनकी एकता को भी प्रदर्शित करता है।
भाजपा आला कमान वर्तमान में झाबुआ की तीनों सीट पर फतह हासिल करना चाहती है ऐसे में उसने अनेक मंत्रियों, नेताओं व पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को यहाँ का दायित्व देकर स्थिति जानने के प्रयास किये वही सर्वे के माध्यम से भी झाबुआ ज़िलें की तीनों सीटों की थाह लेने का प्रयास भी किया है ऐसे में मिली जुली प्रतिक्रिया से भी उनके लिए दावेदार को फाइनल करना मुश्किल नजर आ रहा है ऐसे में वह महिला नेत्री सुशीला प्रेम भाबर के बारें में विचार कर उसे थांदला के लिए दावेदार बना सकती है।
सुशीला के दावेदार बनने से बदल सकती है स्थिति

पूर्व जनपद अध्यक्ष सुशीला प्रेम भाबर वैसे तो पूर्व विधायक कलसिंह भाभर की रिश्तेदार है वही वर्तमान समय में मेघनगर जनपद सदस्य होकर अध्यक्ष पद की प्रमुख दावेदार भी थी लेकिन पार्टी का अन्य को प्रत्याशी बनाना भारी पड़ा व यहाँ बराबर के सदस्य होने के बाद भी कांग्रेस ने बाजी मार ली। सुशीला का सकारात्मक पक्ष उनका स्नेही स्वभाव व कुशल वक्ता होकर पार्टी के हर नेताओं से मधुर सम्बंध होना है वही उनके लिए कलसिंह भाबर का रिश्तेदार होना परिवारवाद के रूप में एकमात्र नकारात्मक पक्ष है हालांकि उनके राजनीतिक सफर में उनकी ही सक्रियता ने उन्हें पार्टी में मजबूती प्रदान की है जो उनके हर नकारात्मक पहलुओं पर सशक्त उम्मीद है।
पहली बार महिला प्रत्याशी रख सकती है जीत की नींव
कांग्रेस के गाँधीवादी नेता विरसिंह भाभर ने अपने कार्यकाल में सभी क्षेत्र में विकास कार्य किये है व कभी अपना क्षेत्र नहीं छोड़ा जो उनके लिए सबसे बड़ा मजबूत पक्ष है ऐसे में भाजपा के भीतर कलह से उत्पन्न परेशानी से यहाँ की सीट को केवल एक महिला नेत्री ही बदल सकती है। भाजपा का नारी शक्ति को बढ़ाने व उनके लिए लाड़ली बहना जैसी योजनाओं को लागू करना व अंचल से पहली बार महिला प्रत्याशी बनाना भाजपा के लिए तीनों विधानसभा में जीत के द्वार खोल सकता है।
भाजपा से उम्मीद लेकिन उम्मीदवार ने किया नाउम्मीद
वर्तमान समय में राष्ट्रवाद व हिंदुत्व के रूप में मुखर हुई भाजपा से स्थानीय आदिवासी अंचल में विकास की उम्मीद है लेकिन स्थानीय नेताओं ने उन्हें निराश ही किया है ऐसे में पूर्व में भी दावेदारी कर चुकी सुशीला भाबर को उस समय भी प्रत्याशी नही बनाना व वर्तमान में उसे जनपद अध्यक्ष के रूप में पुनः मौका नही देने से भाजपा को जो भारी नुकसान हुआ था उसे याद कर उसकी पुनरावृत्ति न हो इसके लिए अंचल में एक बार महिला को नेतृत्व देने से यहाँ नेताओं की फुट फजीती से भी निजात मिलना सम्भव है अन्यथा कांग्रेस के विरसिंह के आगे भाजपा के लिए थांदला विधानसभा सीट जीतना एक सपना ही रह जायेगा।

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