मूक प्राणियों के प्रति करुणा व मंगल भावना के लिए जैन समाज करेगा एक दिन का अनशन तप

मंगल प्रवचन –
जो जाग गया वह मोक्ष मंजिल पा गया – पुण्यशीलाजी
जहाँ आसक्ति वही उत्पत्ति – पुण्यशीलाजी
मूक प्राणियों के प्रति करुणा व मंगल भावना के लिए जैन समाज करेगा एक दिन का अनशन तप
थांदला। धर्म नगरी थांदला में जैनाचार्य पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. “अणु” की पावन परम्परा को आगे बढ़ा रहे बुद्धपुत्र प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. आदि ठाणा -6 के मंगल पदार्पण के साथ ही जैन धर्म स्थानक में धर्म की गंगा बह रही है। पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. के मुखारविंद से बह रही जिनवाणी का श्रेताजन रसपान कर रहे है। पुण्य पुंज ने जैन आगम आचारांग सूत्र का आलम्बन लेते हुए धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने साढ़े बारह वर्ष घोर साधना करके केवल ज्ञान केवल दर्शन को प्राप्त किया उसके बाद भव्य जीवों को प्रतिबोधित किया। भगवान ने भव्य जीवों के लिए फरमाया “उठों प्रमाद मत करों” तो आपसे प्रश्न है कि क्या आप उठे हुए नही हो …? उठने का मर्म समझाते हुए पूज्या श्री ने कहा कि आज का मनुष्य जरा सी मोबाईल की घण्टी बजे या बर्तन की आवाज आ आ जाये, कही जाना हो, शरीर में रोग हो या फिर कोई भयावह स्वप्न देख ले तो तुरंत उठ जाता है लेकिन ऐसा उठने का सौभाग्य तो पशु को भी मिला है। एक कुत्ता भी जरा सी हरकत सुनकर जाग जाता है तो फिर भगवान ने उठने पर बल दिया तो कोई रहस्य ही होगा। इस रहस्य से पर्दा उठाते हुए पूज्या श्री ने कहा मोह नींद से जागने का भगवान कह रहे है। वास्तव में उठना तो सरल है लेकिन जगाना कठिन है। हम उठते है और बाहरी दृश्य देखने में मस्त हो जाते है। आज तक हमने इन आँखोँ का उपयोग केवल बाहरी दुनिया देखने में ही किया है, पृथ्वी, पानी वनस्पति सबकुछ देखने बाहर जाते है और फिर उन पर आसक्त होकर कर्म बंध कर लेते है। उन्होंनें कहा कि जिस वस्तु स्थान की आसक्ति हो जाती है जीव की उत्पत्ति भी वही होती है। इसलिए जागने का वक्त आ गया है। सोना बाहरी दृष्टि है जबकि जागना भीतरी दृष्टि है। बाहरी दुनिया देखने के लिए नाना प्रकार के प्रयत्न करते है। गुरुदेव ने मोक्ष पुरुषार्थ के पहले बोल में ही फरमाया है कि जीव को दुर्लभ मनुष्य भव मिल गया, त्रस व बादर पना मिल गया, मन मिल गया यहाँ तक कि 10 दुर्लभ बोल में भी कुछ बोल प्राप्त हो गए लेकिन उनका यदि सदुपयोग नही किया तो हम सब हार जायेंगें फिर यह पुनः मिलने वाला नही है। उत्तराध्ययन के तीसरे अध्ययन में भगवान में मनुष्य की दुर्लभता बताते हुए कहा है कि मनुष्य भव की 1 लाख योजन के मेरु पर्वत जितनी राई में 1 सरसों का दाना देव सहायता से कदाचित ढूंढ ले लेकिन मनुष्य भव हार जाने के बाद यह मिलने वाला नही है। इसलिए बाहरी दृष्टि वस्तु का मूल्य ही कराएगी जबाकी अंतर्दृष्टि खुल जाए तो जीवन का मूल्य कराएगी और यह सब जिनवाणी पर दृढ़ श्रद्धा से ही सम्भव है। इस अवसर पर सद्गुणाश्रिजी ने फरमाया कि असफल कोई भी होना नहीं चाहता, पिछे हटना या हार मानना किसी को भी पसंद नही। संसारी अपनी सफलता का मापदण्ड भौतिक सम्पन्नता में मानता है अर्थात संसार में जिसके पास भौतिक सम्पन्नता ज्यादा वह उतना सफल, लेकिन ज्ञानी आत्मीक दृष्टि रखते है वे बाहरी सफलता को सफलता नहीं मानते, उनके लिए बाहरी जय जकार तो अंन्तर में हाहाकार मचा रहता होता है। आचारांग सूत्र के द्वारा भगवान ने कहा कि जो एक मोहनीय कर्म को जीत लेता है वह सबको जीत लेता है। सम्यग इष्टि जीव संसार के जड़-चैतन्य पदाथों में भी निर्लिप्त बनकर ही रहेगा। पूज्याश्री ने कहा कि पहले तीर्थकर भगवान के समय समकीत पाया फिर भी लगभग 1 क्रोडा-क्रोड़ी सागरोपम जितनी स्थिति के बाद भगवान महावीरस्वामी
अंतीम तीर्थकर बने उन्हें भी मोह ने रोके रखा लेकिन वे जागृत आत्मा थे तो सभी को जगाने का काम भी कर गए। पूज्याश्री ने कहा कि मोहनीय कर्म का बंध उम्र के हर पड़ाव में होता है तो उसका क्षयोपशम भी हर उम्र में सम्भव है। दृढ़ वैरागी जम्बूस्वामी लघु वय में जाग गए तो उनके साथ 526 अन्य आत्माओं ने भी मोक्ष मंजिल को पा लिया। गजसुकुमाल मुनि की 16 वर्ष में गजब की सहनशीलता से उन्होंनें मोह रूपी कर्म बंधन तोड़ दिए इसलिए हर जीव को प्रबल पुरुषार्थ करते हुए सम्यग पुरुषार्थ करना चहिये। धर्म सभा में पूर्वाध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत ने संघ कि ओर से पूज्याश्री से कुछ दिन ओर स्थिरता की विनंती की। जानकारी देते हुए संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया कि पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. का धर्मदास गण में करीब 26 सतियाजी के साथ सबसे बड़ा सिंघाड़ा है जिसमें पूज्याश्री का बदनावर चातुर्मास है जबकि अनुपमशीलाजी का बामनिया, निखिलशीलाजी का थांदला, सुव्रताजी का पेटलावद व कीरणबालाजी का आष्टा चातुर्मास होगा शेष सतियाजी आपके अधीन रहेगी। किरणबालाजी महासती वृंद आष्टा के लिए विहाररत है जबकि शेष सतियाजी का मिलन पेटलावद हो रहा है जहाँ से सभी अपने आपने चातुर्मास के लिए विहार करेंगें। यहाँ थांदला में चल रहे वर्षीतप में कोकिलादेवी अनोखीलाल बोथरा आज के पारणें के लाभर्थी रहे।

सामूहिक अनशन तप का आयोजन
जीवदया धर्म दलाली कर तीर्थंकर गौत्र का बंध होता है, ऐसे में जैन समाज अनुयायी मूक प्राणियों की घोर बलि के विरोध स्वरूप प्राणीमात्र के प्रति दया व करुणा के भाव मन में संजोए एक दिन का अनशन तप करते आ रहे है। सामुहिक उपवास के पारणें का लाभ वर्धमान खेमराज तलेरा परिवार ने लिया है।

 

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