ज्ञान के साथ तप आराधना कर मनाई ज्ञान पंचमी

ज्ञान के साथ तप आराधना कर मनाई ज्ञान पंचमी
लौकिक ज्ञान से भौतिक सुखाभास धार्मिक ज्ञान से मिलती है मुक्ति – संयतमुनिजी
जिज्ञासा होने पर ज्ञान सीखने की रुचि जगती है – संयतमुनिजी
थांदला। देव भी तीन कारण से पश्चाताप करते है उनमें से एक कारण है मनुष्य भव में मैनें बहुश्रुत का अध्ययन नही किया। इससे यह आशय लगा सकते है कि उन्होंनें मनुष्य भव में ज्ञान की आराधना तो की लेकिन ज्यादा नही कर पाए। इस बात से हम अपने आप को देखें कि हमने कितना ज्ञानार्जन किया। इस चातुर्मास में हमनें क्या नया सीखा। वास्तव में व्यक्ति व्यवहारिक लौकिक शिक्षा के लिए ज्यादा पुरुषार्थ करता है जबकि धार्मिक ज्ञान सीखने में उसे प्रमाद आ जाता है ऐसे में उसका आध्यात्मिक विकास कैसे होगा यह चिंतन ज्ञान पंचमी के पावन प्रसंग पर अपने व्याख्यान में अणुवत्स पूज्य गुरुदेव श्री संयतमुनिजी म.सा. ने व्यक्त किये। पूज्य श्री ने कहा कि व्यक्ति लौकिक ज्ञानार्जन के लिए समय पैसा दोनों लगाता है व सीए, सीएस जैसी शिक्षा के लिए अनेक कष्ट उठाकर भी बड़ी बड़ी पुस्तकों को याद करने से भी संकोच नही करता है जबकि उसे जरा से धार्मिक ज्ञान में भी कठिनाई महसूस होती है। प्रतिक्रमण जैसी आवश्यक धार्मिक ज्ञानार्जन के लिए भी वह तैयार नही होता है। जबकि लौकिक ज्ञान केवल शरीर व भौतिक सुख का आभास मात्र करवाता है जबकि धार्मिक ज्ञान उसकी आत्मा के लिए किया जाता है जो एक दिन मुक्ति का शाश्वत सुख प्रदान करता है। पूज्य श्री ने आगम का आलम्बन लेकर कहा कि “पढमं णाणं तव दया” अर्थात पहले ज्ञानार्जन किया जाता है फिर दया का स्वरूप भी समझ आता है। आत्मा के उत्कर्ष के लिए ज्ञान परम आवश्यक है। ज्ञान से ही आचरण में सुधार आता है और व्यक्ति के जीवन व्यवहार में भी आचरण से ही वह पूजनीय बन जाता है। पूज्यश्री ने कहा कि अज्ञानी व्यक्ति जीवन में भी ठगा जाता है और आध्यत्म में भी उसे भविष्य में देवों की तरह पश्चाताप करना पड़ता है इसलिए अवसर का लाभ उठाते हुए उम्र के किसी भी पड़ाव में हो जब तक मुक्ति न मिले तब तक ज्ञान सीखते रहना चाहिए। पूज्य श्री ने अपने गुरुदेव का स्मरण करते हुए कहा कि जैनाचार्य जिन शासन गौरव पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. भी “अल्प-बहुश्रुत नित पडू, रहूं एकता लीन – कब होगा पंडित मरण साधु मनोरथ तीन” का नित्य प्रार्थना में चिंतन किया करते थे जिससे भी ज्ञान की आवश्यकता का पता चलता है। उन्होंनें थांदला में चल रही बच्चों की जैन पाठशाला पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि बच्चों में पाठशाला के माध्यम से ज्ञानार्जन हो जाता है श्राविका वर्ग भी दिन में आकर थोकड़े व धार्मिक ज्ञानार्जन कर लेती है लेकिन बड़ो को पाठशाला में जाने में व ज्ञान सीखने में शर्म आती है इसलिए गुरुदेव ने श्रावक वर्ग की ज्ञान सीखने की प्रवृत्ति को स्वाध्याय शाला कहा है, लेकिन इसका कितना लाभ वे स्वाध्यायी बनकर लेते है यह स्वयं को चिंतन करना है। वास्तव में जब मन में जिज्ञासा हो तो ज्ञान सीखने की रुचि जगती है, ज्ञानार्जन से जीव में हेय-ज्ञेय-उपादेय की योग्यता आती है जिससे वह एक दिन आत्मा के निकट आकर परमात्म दशा पा लेता है। पूज्य श्री ने थांदला तप की प्रसंशा करते हुए कहा कि यहाँ तपस्या तो बहुत हुई लेकिन ज्ञानार्जन में थोड़ी कमी है जिसे दूर किया जाना चाहिए। पूज्यश्री 18 पाप में राग-द्वेष का विवेचन सविस्तार कर रहे है ऐसे में उन्होंनें राग को अनुकूल व द्वेष को प्रतिकूल बंधन बताते हुए इन्हें ही सभी पाप व दोषों का कारण कहते हुए इनसे बचने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर गुरु भक्ति पखवाड़ा मनाते हुए पूज्य श्री धर्मदासजी म.सा. और उनकी शिष्य परम्परा में सातवें आचार्य पूज्य श्री नन्दलालजी म.सा. के उत्कृष्ट जीवन पर प्रकाश डालते हुए पूज्य श्री आदित्यमुनिजी म. सा. ने कहा कि गुरुभगवंतों का इतिहास जानने से ही वह सुरक्षित रहता है व उनके गुणों का स्मरण करने से उनके जैसे बनने के भाव बनते है। पूज्य श्री ने नन्दलालजी म.सा. के सम्पूर्ण जीवन का सार बताते हुए उनके दृढ़ वैराग्य व शांत स्वभाव जैसे गुण ग्रहण करने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने नया ज्ञान सीखने के भाव व्यक्त कर गुरुदेव के श्री मुख से वाचनी ग्रहण की।
वरण के एकासन में आज सिद्ध का दिन

चातुर्मास काल को महज 10 दिन ही शेष बचे है ऐसे में गुरुदेव के प्रति सभी की आस्था और गहरा गई है। जानकारी देते हुए संघ अध्यक्ष भरत भंसाली मंत्री प्रदीप गादिया व प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया कि थांदला अणुवत्स आदि ठाणा 4 के आत्मोत्कर्ष वर्षावास में यहाँ विराजत सरलमना पूज्या श्री निखिलशीलाजी म.सा. एवं माताजी पूज्या श्री दिव्यशीलाजी म.सा. आदि ठाणा 4 के पावन सानिध्य में इस वर्ष तपस्या के ठाठ लगे हुए है जहाँ पूज्य गुरुभगवंतों की प्रेरणा से पहले ही 15 मासक्षमण, 64 सिद्धितप, 65 से अधिक अट्ठाइया व अन्य विविध तपस्या ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए है वही 51 तपस्वी वरण के एकासन तप कर रहे है जिसमें आज सिद्ध भक्ति का दिन होने से केवल गेहूँ से बने द्रव्य का उपयोग करते हुए तपस्वियों ने एक समय आहार ग्रहण कर एकासन तप किया। सभी तपस्वियों के एकासन तप की व्यवस्था स्थानीय महावीर भवन पर की गई जिसका सम्पूर्ण लाभ शाकुंतलम फाउंडेशन के ऑनर वर्धमानजी, मयूरजी, डॉ देवेंद्र तलेरा परिवार ने लिए। व्यवस्था में श्रीसंघ अध्यक्ष भरत भंसाली, कोषाध्यक्ष संतोष चपलोद, मंगलेश श्रीश्रीमाल, पवन नाहर, महिला मण्डल अध्यक्षा श्रीमती पुष्पा घोड़ावत, रेखा गादिया, अनुपमा श्रीश्रीमाल, सानिया तलेरा, ललित जैन नवयुवक अध्यक्ष रवि लोढ़ा सहित अन्य जन के साथ तलेरा परिवार के सदस्यगण उपस्थित रहे।

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