थांदला सिविल अस्पताल की अव्यवस्थाओं से निजी अस्पतालों की चांदी

थांदला सिविल अस्पताल की अव्यवस्थाओं से निजी अस्पतालों की चांदी
होनहार डॉक्टरों के होने के बावजूद आ रही परेशानी
थांदला। झाबुआ ज़िलें में सर्वाधिक ओपीडी (मरीजों की संख्या) होने के बावजूद थांदला सिविल अस्पताल में अव्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है। यहाँ डॉक्टर्स तो है लेकिन आवश्यक उपकरण व अन्य सुविधाओं के आभाव में मरीजों को निजी अस्पतालों की शरण में जाना पड़ रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यहाँ पर ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर बी.एस. डावर के मार्गदर्शन में सीनियर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर कमलेश परस्ते, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रदीप भारती, मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर मनीष दुबे, सर्जिकल स्पेशलिस्ट डॉक्टर हार्दिक नायक, दंत विशेषज्ञ डॉक्टर तपस्या सुनगरिया, मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर स्वाति मंडलोई, डॉक्टर चंचल पिपलाज, डॉक्टर शुभम डामोर के साथ डॉक्टर कुलदीप भरपोड़ा व डॉक्टर श्रीकृष्ण सौलंकी अपनी अमूल्य सेवाएँ दे रहे है लेकिन अधिकांश अवसरों पर यहाँ उपकरणों व अन्य आवश्यक सुविधाओं के आभाव में इन डॉक्टर्स में योग्यता होते हुए भी मरीजों की संख्या में कमी आई है व आसपास ग्रामीण अंचलों के अधिकांश मरीज निजी अस्पतालों में जाकर अपना ईलाज करवाने के लिए मजबूर हो रहे है। गुजरात व राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र होने से व नगर के आसपास भेरूघाट होने से यहाँ पर दुर्घटनाओं का अंदेशा बना रहता है लेकिन अफसोस है कि यहाँ कोई नियमित हड्डिरोग विशेषज्ञ भी नही है। ज़िलें के डॉक्टर संदीप ठाकुर भी सप्ताह में तीन दिन यहाँ आते है लेकिन डिजिटल एक्सरे मशीन सहित ऑपरेशन सम्बन्धी अन्य सुविधाओं के आभाव में वे भी अधिकांश मरीजों को बाहर ही रेफर करते है। बाहर रेफर किये जाने वालें मरीजों को भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जिसका मुख्य कारण यहाँ एम्बुलेम्स पर कोई ड्राइवर नही होने से होती है। बताया जाता है कि एम्बुलेम्स के ड्राइवर के रिटायर्ड होने के बाद लंबे समय से किसी भी ड्राइवर की नियुक्ति नही हुई है। यहाँ दंत चिकित्सक के रूप में डॉक्टर तपस्या करीब दो वर्षों से पदस्थ है लेकिन अभी तक उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा नही मिल पाई है जिसके चलते नगर में सिविल अस्पताल में दंत चिकित्सक का होना न होना एक जैसा ही है। ज़िलें में स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर प्रदीप भारती सुविधाओं के आभाव में अच्छा कार्य कर रहे है लेकिन फिर भी सोनोग्राफी मशीन व बेहोशी वाला डॉक्टर की आवश्यकता बनी रहती है जो अन्य सर्जन डॉक्टरों के लिए भी आवश्यक सुविधाओं में शामिल है यही कारण है कि सर्जन डॉक्टरों के होने के बावजूद सिविल अस्पताल में माइनर (छोटी सी) सर्जरी के लिए भी मरीजों को निजी अस्पतालों की शरण में जाना पड़ रहा है। यही नही इन होनहार डॉक्टरों के लिए न सेनेटाइजर व नही मास्क की उपलब्धता रहती है जिसके चलते भी डॉक्टर्स या तो निजी पैसों से सेनेटाइजर लाते है या फिर अधिकांश मरीजों का सही एक्जामिन किये बिना ही डोज लिख देते है। जब डॉक्टर के लिए सेनेटाइजर व हैंड वॉश उपलब्ध नही है तो फिर मरीजों के लिए भी मेडिसिन कहाँ मिल पाएगी जिसके चलते मरीजों को बाहर से महंगी दवाई खरीदना पड़ती है। इन मूलभूत सुविधाओं के आभाव में निजी अस्पतालों की चांदी हो गई है। निजी अस्पतालों की अगर बात की जाए तो थांदला जैसे छोटे से नगर में करोड़ों का निवेश कर निजी अस्पतालों का धंधा चल निकला है। यहाँ निजी अस्पतालों में सोनोग्राफी मशीन, डिजिटल एक्सरे मशीन, सिटी स्कैन मशीन सहित इनके ऑपरेटर भी मौजूद है यही नही इन अस्पतालों में एनेस्थीसिया (बेहोश करने वाला डॉक्टर) भी है जिसके चलते नगर व ग्रामीण अंचल के सामान्य मरीजों को आर्थिक आभाव के कारण समस्याओं से दो चार होना पड़ता है।
इनकी आवश्यक है आवश्यकता
सिविल अस्पताल में जहाँ एक स्पेशलिस्ट मेडिसिन डॉक्टर्स (एमडी) का पदस्थ होना जरूरी है तभी यहाँ की जनता हेवी डोज से निजात पा सकेगी। वही एनेस्थीसिया के होने पर सामान्य व गम्भीर सर्जरी के लिए मरीजों का बाहर जाना बंद होगा। इसी प्रकार सोनोग्राफी व डिजिटल एक्सरे मशीन की लंबे समय से मांग की जा रही है जिसे हर हाल में जिला स्वास्थ्य अधिकारी को प्राथमिकता देने की जरूरत है। इसी तरह दाँत के डॉक्टर को आवश्यक उपकरण दिए जाने की जरूरत है तभी वह भी अपनी प्रैक्टिस सुचारू कर सकेगी अन्यथा उसके होने पर भी नगर की जनता को बाहर जाना पड़ेगा।
नेत्र सहायक राजू नायक की सराहनीय सेवा
नगर में नेत्र सहायक राजू नायक आँखों की हर बीमारियों से वाकिफ हो चुके है व आँखों सम्बन्धी परेशानियों से ग्रस्त मरीजों के लिए हमेशा उपलब्ध है। नायक ने ज़िलें में जब नेत्रदान नही होते थे तब रोवर्स क्लब व रोटरी क्लब के माध्यम से व सीनियर ब्लॉक मेडिकल अधिकारी सर्जन डॉक्टर चतुर्वेदी के साथ मिलकर नेत्रदान करवाये। नायक के सार्थक प्रयासों से नगर में 70 के करीब नेत्रदान हो चुके है जिसे सम्बंधित क्लब सदस्यों ने विभिन्न नेत्र चिकित्सालय भिजवाकर दोगुनी लोगों की अंधेरी दुनिया को रोशन किया है। नायक आज भी सक्रियता से जिला चिकित्सा अधिकारी के निर्देशन में तो कार्य कर ही रहे है वही विभिन्न स्कूलों में व ग्रामीण अंचल में जाकर अंधत्व निवारण के सार्थक प्रयास कर रहे है। उनके प्रयासों से हजारों की संख्या में मोतियाबिंद के ऑपरेशन हुए है यदि यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। जिला कलेक्टर व जिला चिकित्सा अधिकारी को चाहिए कि ऐसे कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों को राष्ट्रीय पर्व पर सम्मानित करें ताकि उनसे प्रेरणा लेकर सहयोगी व अन्य विभागीय कर्मचारियों को भी अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहने की प्रेरणा मिल सके।

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